70 साल से पासमंदा मुसलमानों के साथ ना इंसाफी क्यो?

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दिल्ली- आख़िर ज़िम्मेदार कौन? जब संविधान बना तो उसमे अर्टिकल 1 से 15 में साफ साफ लिखा है की सबको समान अधिकार और न्याय मिलेगा तो 70 साल से पासमंदा मुसलमानों के साथ ना इंसाफी क्यो? उनको समान अधिकार क्यो नही दिया गया

जबकि हिंदू को सामाजिक प्रस्तिथि के आधार पे आरक्षण दिया गया तो जो पसमंदा मुसलमान की भी प्रस्तिथि, स्तिथि उन्ही हिंदू दलित, हरीजन् की तरह थी तो उनको आरक्षण क्यो नही?133 लोकसभा 1265 विधानसभा सिट‌ पर मुसलमान का हक़ नहीं क्योकि अश्राफ् मुसलमानों ने ये कह के मुसलमानों को नक़सान पहुचाया की मुसलमानों में सब बराबर है कोई पसमंदा नही होता एस सी, एस टी नही होता आरक्षण से मुसलिम समाज को सीधे तौर पे 132 सीट का नुक़सान हो रहा है और सिर्फ पसमंदा मुसलमान उनके बराबर न आ जाए इसके लिए अश्राफ् मुसलमानो ने ये सियासी नुक़सान किया और सियासी ‌स्तर पर हमेशा नुक़सान में ही रहा

अब महिला आरक्षण,
बटवारा से हिन्दू फ़ाएदे में । तो फिर मुसलमान बदनाम कैसे? 70 साल से बहुसंख्यक को सियासी लुटेरे गुमराह करते रहे । पटेल,नेहरु और प्रसाद 3 Clever ज़िम्मेदार और एक ना समझ बेवकूफ मौलाना आज़ाद जिन्होंने एस सी एस टी के इस आरक्षण को समझ ही नही पाए जो सामाजिक स्तिथि को देख के दिया गया, जब हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही प्रस्तिथि मे जी रहे थे तो एक को आरक्षण और एक को ढेंगा क्यो? और उस वक़्त के जो अश्राफ् नेता थे क्या उनको ये भेद भाव समझ में नही
आया था या वो नही चाहते थे की कोई पसमंदा मुसलमान उनके बराबर आये, सवाल तो बनता है।।

समय समय पे समाज में समांता, बराबरी की बात कही जाती रही है पर किसी युग में आम मनुष्य को समान अधिकार नही मिला, चाहे वो द्वापर युग हो या कलयुग हर युग में बड़े जात के लोग छोटे जात के लोगों पे शोषण करता आया है, चाहे ब्रह्मनो को गीता, रामायण और शाश्तर पढ़ने की अनुमति नही थी और उनको समान अधिकार नही मिलता था वही आज भी पसमंदा मुसलमानों को उनका हक़ नही मिला, संविधान के अनुसार हिंदू चमार, डोम, नाई, पासवान, को संपूर्ण आरक्षण की व्यव्यस्था है वही मुसलमानों की क़ौम की नाई, चमार, डोम, बखो, भीष्टि, भाठीआरा अंसारी को ये समान अधिकार नही है, ये कैसा समांता है समाज में की एक ही स्थिति प्रस्तिथि के हिंदुओ को आरक्षण और मुसलमानों को कुछ नही, हैरत तो अब और है की सभी भाजपा नेता और सुशील कुमार मोदी ने कहाँ की समान नागरिक संहिता से बाहर रखे जा सकते है हिंदू आदिवासी क्षेत्र, वही शिव सेना और बसपा गुट ने समान नागरिक संहिता को स्पोर्ट किया वही दूसरी तरफ विपक्ष के कुछ दल और कांग्रेस और द्रमुक समेत कई विपक्ष नेता ने इसे चुनाव के फायदे का हथियार बताया, आश्चर्य तो तब होता है की मुल्क़ के एक बड़ा तबका मुसलमानों के किसी नेताओ को विपक्षी दलों में नही रखा गया, न मुस्लिम लीग, न इंडियन मुस्लिम लीग और न ही एम. आई. एम के किसी सदस्यों को रखा गया, अब समाज पूछता है की अगर सरकार धरा 341 पे बात ही नही कर रहा तो ये कैसा समान नागरिक संहिता है पहले पसमंदा मुसलमानों को आरक्षण देकर उनको बराबर करो तब समान नागरिक कानून की बात करो, पिछड़े वर्ग के मुसलमानों की हालात बद से बदतर हो गई है भारतीय आदिवासी दलित से भी नीचे है पर कोई उनके हक़ की बात ही नही कर रहा है।।
इरफान जामियावाला