बुद्ध ने जब अपने कमज़ोर होते शरीर के अंतिम समय की घोषणा की, तब उनके सबसे प्रिय शिष्य आंनद दुःख से बहुत अधिक भावुक हो गए.. आंसू भारी आंख और कांपते होंठों से आंनद ने बुद्ध को रुक जाने को कहा.. क्यूंकि कहीं न कहीं आनंद को ये लगता था कि बुद्ध अगर चाहें तो वो इस शरीर मे सदैव बने रह सकते हैं.. क्योंकि वो उनके लिए उनके शाक्यमुनि थे.. उनके तथागत थे.. और उनके भगवान थे
एक बार.. दो बार और फिर तीसरी बार आंनद ने फिर रोते हुवे कहा “तथागत.. आप रुक जाएं”
तब बुद्ध आंनद से बोले “क्या तुम्हें अपने तथागत पर विश्वास खत्म हो चुका है आनंद””
आंनद ने कहा “नहीं.. मुझे आप पर पूरा विश्वास है तथागत”

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष
तब बुद्ध ने कहा “अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास है.. अपने तथागत की बुद्धिमता पर विश्वास है, फिर क्यूं तुमने मुझे तीसरी बार वही बात कह के परेशान कर रहे हो? क्या मैंने तुमको ये नहीं सिखाया है कि पृथ्वी पर मौजूद सभी पदार्थों का ये गुण होता है कि उन्हें वापस घुल जाना होता है? और हमें अपने आपको हर उस प्रेम और मोह के बंधन से मुक्त करना होता है और उन्हें छोड़ना होता है? फिर मेरे लिए ये कैसे संभव है आंनद कि मैं यहां सदैव के लिए बना रह जाऊं? क्योंकि जो कुछ भी यहां पैदा हुआ है या इस पृथ्वी से जन्मा है उसे वापस इसी में मिलना होता है.. फिर मेरे लिए ये कैसे संभव है कि मेरा शरीर वापस इस प्रकृति में न घुले? ऐसी कोई भी संभावना मेरे प्रति संभव नहीं है.. इसलिए जान लो कि अब आनंद से तथागत का सारा बंधन टूट चुका है.. अब तथागत आनंद को पूरी तरह से त्याग चुके हैं”
बुद्ध, आनंद की आंखों में भरे आंसू को देखते हुवे आगे कहते हैं “इसलिए आनंद.. अब तुम्हें अपना दीपक स्वयं बनना होगा.. सत्य के मार्ग में सिर्फ़ अपने ऊपर भरोसा करना और कभी भी किसी दूसरे की मदद पर भरोसा न करना.. सत्य पर अपनी पकड़ दीपक की तरह मज़बूत बनाये रखना.. अपने मोक्ष का रास्ता अकेले ढूंढना और इसमे अपने सिवा कभी भी किसी दूसरे की मदद न ढूंढना”